भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अक्का बक्का तीन तड़क्का / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:09, 15 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुसूदन साहा |अनुवादक= |संग्रह=ऋष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अक्का-बक्का तीन तडक्का
जीवन है गाड़ी का चक्का।
चलता रहता चक्का हरदम
दुनिया में कांटों के पथ पर,
लेकर आता बहुत दूर से
सूरज को सोने के रथ पर,
कभी नहीं यह घबड़ाता है
पथ कच्चा हो या पक्का।
बाधाओं के रोड़े हर क्षण
पाँव पकड़कर इसे रोकते,
ऊबड़-खाबड़ खाई-खंदक
कदम-कदम पर इसे टोकते,
आँधी, अंधड़, तूफानों को
देख न होता हक्का-बक्का।
चलना इसका काम हमेशा
रुकना इसको नहीं सुहाता,
मंजिल पाने की इच्छा से
ऊँचे पर्वत पर चढ़ जाता,
कीचड़ में फँसने पर इसको
साहस आकार देता धक्का।