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नील गगन में उड़ी पतंग / मधुसूदन साहा
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नील गगन में उड़ी पतंग,
हवा सहेली को ले संग।
लाल-गुलाबी, नीली-पीली
लगती है कितनी चमकीली
भरती मन में नई उमंग,
नील गगन उड़ी पतंग।
कभी तैरती, गोता खाती,
कभी बादलों से बतियाती।
देख उसे सब होते दंग,
नील गगन में उड़ी पतंग।
डोर बँधी है उसके तन से,
भटक नहीं पाती है मन से
कभी नहीं करती है तंग,
नील गगन में उड़ती पतंग।