भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नील गगन में उड़ी पतंग / मधुसूदन साहा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:14, 15 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुसूदन साहा |अनुवादक= |संग्रह=ऋष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नील गगन में उड़ी पतंग,
हवा सहेली को ले संग।

लाल-गुलाबी, नीली-पीली
लगती है कितनी चमकीली

भरती मन में नई उमंग,
नील गगन उड़ी पतंग।

कभी तैरती, गोता खाती,
कभी बादलों से बतियाती।
देख उसे सब होते दंग,
नील गगन में उड़ी पतंग।

डोर बँधी है उसके तन से,
भटक नहीं पाती है मन से
कभी नहीं करती है तंग,
नील गगन में उड़ती पतंग।