Last modified on 15 अप्रैल 2020, at 20:16

नई किताबें जब आती हैं / मधुसूदन साहा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:16, 15 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुसूदन साहा |अनुवादक= |संग्रह=ऋष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नई किताबें जब आती हैं
सबके मन को ललचाती हैं।
रंग-बिरंगे चित्र सुहाने,
आँखों को लगते ललचाने,
नीले, पीले, हरे, सुनहले
सब लगते हैं रंग जमाने,

आड़ी तिरछी, सीधी टेढ़ी
सब रेखाएँ इतराती हैं।

कथा-कहानी मन को भाती,
मुन्नी पहले ही पढ़ जाती,
मेरे कानों में पढ़ जाती,
मेरे कानों में कुछ कहने
झट-से गोदी में चढ़ जाती,

उसके मन में परीलोक की
पारियाँ रह-रह मुस्काती हैं।

कविताएँ गुड्डू गाता है,
उसका स्वर सबको भाता है,
अपने तुतलेपन से सबका
मन खुशियों से भर जाता है,

उसकी भोली-भाली बातें
पूरे घर को महकाती हैं।

दादा कहते पढ़ो ध्यान से,
सुख मिलता है सदा ज्ञान से,
जिसका मन पढ़ने में रमता
जीवन जीता वही शान से,

जिसमें हो पढ़ने की आदत
उसकी साँसे सुख पाती है।