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दो कंदीलें / उर्मिलेश
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अक्सर इन रातों में
तिर आतीं आँखों में
दो जलते कंदीलें I
ठहर-ठहर कर अक्सर
लिख जातीं कुछ मन पर
वे दो नीली झीलें I
आंसू की तरह
गिरता है मोम पिघल
जैसे बिखरी खीलें I
भीगी हर कोर लिये
जुड़ आतीं शोर लिये
यादों की तहसीलें I