भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रिश्तों को गुणा भाग देते / उर्मिलेश
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 23 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिलेश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
किसको दुख देते हम
किसका दुख लेते,
उम्र कटी रिश्तों को
गुणा भाग देते I
प्यासी है सतह
और होंठो पर पानी,
हर बहती सरिता कि
है यही कहानी;
सपनों की नाव यहाँ
कब तक हम खेते I
अनचाहा बोझ लिये
ये अपने साये,
सूरज जब तेज़ हुआ
और सिमट आये;
जब सब-कुछ टूट गया
तब जाकर चेते I
निर्वासित आज हुईं
मौन प्रतिज्ञाएँ
सपने-सा तोड़ गईं
हमको दुविधाएँ
दो जगते बिम्ब बने
नींद के चहेते I