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सीता हरण / राघव शुक्ल

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जाता हूं भइया के पीछे मातु हॄदय में धीरज धरना
लक्ष्मण रेखा पार न करना

व्याघ्र सिंह से नरभक्षी पशु
कानन में भीषण भय भरते
दुष्ट कुचाली कुटिल राक्षस
भेष बदलकर विचरण करते
राम धनुर्धर के होते तुम मइया किंचित भी मत डरना

लखन गए जो प्रभु के पीछे
रावण आया साधु रूप में
वही दिखावा वही छलावा
घिरा अंधेरा तेज धूप में
बोला देवि रेख यह लांघो तभी साधु की झोली भरना

भाग्य लेख में हरण लिखा था
जो सीता ने कदम बढ़ाया
रावण लंका ओर ले गया
हरि ही जाने हरि की माया
अब है लंका दहन सुनिश्चित, निश्चित है रावण का मरना