भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुरु शुकदेव मिलेंगे तुमको / राघव शुक्ल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:39, 24 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राघव शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गुरु शुकदेव मिलेंगे तुमको यदि हो सको परीक्षित
मिले काल से आंख अगर सन्निहित शक्ति हो जाये
विघ्न और भयव्यापी जग से जब विरक्ति हो जाये
चक्रपाणि भी हो जायेंगे आकर स्वयं उपस्थित
गुरु शुकदेव मिलेंगे तुमको यदि हो सको परीक्षित
रहे हमारा चित्त भ्रमर की भांति चरण में सेवित
चरणों में विश्राम चरण में निश्छल नमन निवेदित
गुरु ही ज्ञानस्वरूप करेंगे विमल ज्ञान में दीक्षित
गुरु शुकदेव मिलेंगे तुमको यदि हो सको परीक्षित
जो गुरु के प्रति सदा समर्पित जिसके अहम धुले हैं
सारे द्वार ज्ञानगंगा के उसके लिए खुले हैं
सदा समर्पण से ही मिलते हैं प्रतिफल प्रिय इच्छित
गुरु शुकदेव मिलेंगे तुमको यदि हो सको परीक्षित