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आँसुओं के आचमन का / अभिषेक औदिच्य

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आँसुओं के आचमन का ही मुझे अधिकार दे दो,
दे सको तो तुम मुझे बस एक यह उपहार दे दो।

एक पग के साथ का भी,
मैं तुम्हें परिणाम दूँगा।
रुक्मिणी का नाम दूंगा,
द्वारिका-सा धाम दूंगा।
चूम लूंगा हाथ दोनों,
और बस इतना कहूँगा,

आज ठहरे सागरों में वेदना का ज्वार देदो,
दे सको तो तुम मुझे बस एक ये उपहार दे दो

राह पथरीली बहुत है,
धूप भी है, शूल हैं,
और धाराएँ नदी की,
तेज भी प्रतिकूल भी हैं।
मान लो अब बात मेरी,
मुक्त कर दो हाथ अपने।

थक गए हो तुम बहुत ही अब मुझे पतवार दे दो।
दे सको तो तुम मुझे बस एक यह उपहार दे दो।

बीच गंगा में कहूँ या,
भोज-पाती पर लिखूँ।
तुम कहो तो हाँ तुम्हारा,
नाम छाती पर लिखूँ।
हार जाओ आज अपनी,
भावनाओं से प्रिये।

और तुम संवेदनाओं को नवल शृंगार दे दो।
दे सको तो तुम मुझे बस एक यह उपहार दे दो।