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गीतों से पहले / रवीन्द्र भ्रमर
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पँछी में गाने का गुन है
दो तिनके चुनकर
वह तृप्त जहाँ होता है
गीतों की कड़ियाँ
बोता है !
सूखा पेड़
कँटीली टहनी
बियाबान, सुनसान —
उसे नहीं खलते हैं
उसके तन में
चुभी हुई है
कोई वंशी,
उसके रोम-रोम में
सुरवाले, मीठे सपने पलते हैं ।