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उनसे प्रीत करूँ, पछताऊँ / रवीन्द्र भ्रमर

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उनसे प्रीत करूँ, पछताऊँ !

सोन महल लोहे का पहरा,
चारों ओर समुन्दर गहरा,
पन्थ हेरते धीरज हारूँ
उन तक पहुँच न पाऊँ ।।

प्रीत करूँ, पछताऊँ !

इन्द्र धनुष सपने सतरंगी
छलिया पाहुन छिन के संगी,
नेह लगे की पीर पुतरियन
जागूँ, चैन गवाऊँ ।

प्रीत करूँ, पछताऊँ !

दिपे चनरमा नभ दर्पन में
छाया तैरे पारद मन में,
पास न मानूँ, दूर न जानूँ
कैसे अंक जुड़ाऊँ ?

प्रीत करूँ, पछताऊँ !
उनसे प्रीत करूँ, पछताऊँ !