सुकूँ चैन अपना लुटाते लुटाते
कहाँ आ गए ग़म उठाते उठाते
हमें ज़ुल्म सहने की आदत पड़ी है
परेशान हैं वह सताते-सताते
तेरी आँखें आँसू से क्यों भर गई थीं
मुझे अपना दुश्मन बताते बताते
मेरे यार का फ़लसफ़ा ही जुदा है
हँसाता है, लेकिन रुलाते रुलाते
कहीं तुम महब्बत को रुसवा न कर दो
ये दिन-रात एहसाँ जताते-जताते
गिनाने लगे हैं वह माथे की सिलवट
मुझे चाँद-तारे गिनाते-गिनाते
मैं तर्के-महब्बत की दहलीज़ पर हूँ
तेरे नाज़-ओ-नखरे उठाते उठाते
मेरे बच्चो, अपनी भी राहें निकालो
कमर झुक गई अब कमाते-कमाते