भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संसार का कुत्ता / सुशील साहिल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:22, 27 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशील साहिल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फिरा करता है आवारा तुम्हारे यार का कुत्ता
ज़माना जिसको कहता है दिले-बीमार का कुत्ता

मेरी दुम को नहीं सटने दिया तूने कभी दुम से
नहीं तो, खेलता घर में हमारे प्यार का कुत्ता

सुनो, भौं-भौं से इसकी क्या मधुर सरगम निकलती है
इसे कहते हैं दुनिया में बड़े दरबार का कुत्ता

डराता है मुझे वह खौलते पानी से चिमटे से
कोई घर का समझता है कोई बाज़ार का कुत्ता

बना कागज़ का है तो क्या, तुम इसके दाँत तो देखो
सभी कुत्तों में घातक है यही अख़बार का कुत्ता

न मैं, खुलकर कभी भौंका, नहीं गीला किया टायर
मेरे पट्टे पर ही लिक्खा था इज़्ज़तदार का कुत्ता

मैं खाने से भी ज़्यादा अपने साथ लेके जाता हूँ
मुझे पहचान ले तू, मैं ही हूँ सरकार का कुत्ता

तभी तो शक्ल इसकी हूबहू गदहे से मिलती है
यहाँ का हो नहीं सकता, ये है उस पार का कुत्ता

इसे पूछो कि बारह बज गए, तो काट खायेगा
रहेगा नासमझ का नासमझ सरदार का कुत्ता

ये पहले भौंकता है, बाद में पंजा दिखाता है
तुम इससे दूर ही रहना, है थानेदार का कुत्ता

उसे जितना खिलाओ, हर घड़ी भूखा ही रहता है
मियाँ, सबसे अलग होता है साहूकार का कुत्ता

इसे देखो, ये हड्डी दोस्तों में बाँट देता है
बड़ा दिल वाला है, होगा किसी फ़नकार का कुत्ता

हमेशा सूँघता है दूसरों को, भीड़ में घुसकर
बहुत शातिर हुआ करता है पॉकेटमार का कुत्ता

सभी कुत्ते नज़र नीची झुका कर बैठ जाते हैं
गुज़रता है गली से जब कभी ख़ुद्दार का कुत्ता

सभी कुत्ते हैं लेकिन, ख़ूबियाँ हैं मुख़्तलिफ़ सबकी
कभी इक-सा नहीं होता है इस संसार का कुत्ता

मुहूरत देखकर जल्दी से कर दूँ पीली दुम इसकी
अगर मिल जाये 'साहिल' -सा भले परिवार का कुत्ता