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न बुझी आग की गाँठ / केदारनाथ अग्रवाल
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न बुझी
आग की गाँठ है
सूरज :
हरेक को दे रहा रोशनी —
हरेक के लिए जल रहा —
ढल रहा —
रोज़ सुबह निकल रहा —
देश और काल को बदल रहा
02 अप्रैल 1968