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बात है शब्द नहीं है / रवीन्द्र भ्रमर
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बात है शब्द नहीं हैं
कैसे खोल दूँ ग्रन्थित मन !!
तुम अधीर प्रान हुए कुछ सुनने को
मर्म के उगे दो आखर चुनने को,
प्रीति है
मुक्ति नहीं है,
कैसे तोड़ दूँ सब बन्धन ?
बांसुरी लगी है लाज नहीं बजेगी
स्वर की सौतन राधा नहीं सजेगी,
कण्ठ है
गान नहीं है,
रूठ न जाना मन मोहन ।।
पाँव लग रहूँगी मौन, सहूँगी व्यथा,
कह न सकूँगी अपने स्वप्न की कथा,
भाव है
छन्द नहीं है,
मौन ही बनेगा समर्पन !!
कैसे खोल दूँ ग्रन्थित मन ?
बात है शब्द नहीं हैं,
मौन ही बनेगा समर्पन ।।