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गुच्छ-गुच्छ फूले कचनार / रवीन्द्र भ्रमर

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गुच्छ-गुच्छ फूले कचनार !
भूली बिसरी राहों लौट आ
ओ मेरे प्यार !

आ कि तुझे अलसाये स्वर दूँ
कोकिल की कू-हू वाला नीलाम्बर दूँ,
आ कि तुझे नई कोंपलों की सौगन्ध
आ कि आम्र मंजरियों फूट गई गन्ध,
वन-उपवन, घर बाहर,
उठ रही गुहार
एक ही गुहार — 
भूली बिसरी राहों लौट आ
ओ मेरे प्यार !

कण्ठ कण्ठ उठते ये गीत नए
खेतों खलिहानों पर होरी के छन्द छये,
जौ गेहूँ की जवान बालों सा हिया
स्वागत में खिरकी दरवाज़े सब खोल दिए,
डर लगता, अनसुनी न हो,
यह पुकार
एक ही पुकार — 
भूली बिसरी राहों लौट आ
ओ मेरे प्यार !

कुछ अजब उदासी, कुछ टूट रहा
मुखरित साधों का पल अनगाया छूट रहा,
फूलों वाला मौसम, चोटें अनगिन
असफल प्रतीक्षा ज्यों रीत रहे दिन,
हर क्षण को डुबो रहा,
फागुन का ज्वार
कहाँ मिले पार — 
भूली बिसरी राहों लौट आ
लौट आ, ओ मेरे प्यार !
फूले कचनार ...