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स्त्री - 2 / सत्या शर्मा 'कीर्ति'
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आज की स्त्री
रूढ़ियों के बंधन तोड़
सुबह जुड़े में
बाँध लेती है
संस्कारों के फूल
देव चरण में पुष्प अर्पित कर
रचती है बच्चों के सुनहरे भविष्य
पति के कंधों से उतार
फेंकती है परेशानियों के पल
सब्जियों के छौंक संग
सोच लेती है अनगिनत से
योजनाएं
खाने संग परोसती है
प्यार और स्नेह से भरी रोटियां
गढ़ती है खाली पलों में
भविष्य के सुनहरे सपने
क्योकिं स्त्रियां अब रोती
नहीं है
वरन ढूंढती है समाधान
समस्याओं का
करती है हल परेशानियों का
और रोपती है आँगन में
खुशियों से महकती तुलसी।