भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक प्रेम-रंग / भारत यायावर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:57, 1 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत यायावर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम सुन्दर और सलोने हो
अपनी गगरी में भरे - भरे
तुम निर्जनता में मधुर नाद
मैं धरती का बस क्रन्दन हूँ
मैं तुमको पाने को विह्वल
तुमको ही खोजा करता हूँ

तुम चमक रहे बिन बिजली के
मैं बिन बादल भीगा करता हूँ

तुम ऊपर - ऊपर उड़ते हो
मैं धीमी चाल में चलता हूँ
तुम आराधन हो अम्बर के
मैं धरती के गान ही सुनता हूँ
मैं तजकर अपनी लाचारी
कुछ अधिक नहीं कह पाता हूँ
मैं अपनी लघुता में होकर
कुछ कहने से कतराता हूँ