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फुल्न खोजेँ / गीता त्रिपाठी

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फुल्न खोजेँ काँढासँगै हृदयमा चोट पर्योँ
ओइलिएर वसन्तको फूल पनि त्यसै झर्योा
 
चैतझरी पर्योक भनी खुसीसाथ रोपेको'थेँ
कीराले पो काटिदेला मनकै ओढ छोपेको'थेँ
उडाइदियो हुरी आई मनको आकाश अन्तै सर्योे
ओइलिएर वसन्तको फूल पनि त्यसै झर्योर
 
खडेरीमा आफैँ सुकेँ माया मैले थपिरहेँ
आफ्नै छाया खन्याएर पोल्ने घाम खपिरहेँ
के भो कुन्नि भित्रभित्रै मनको आश त्यसै मर्योे
ओइलिएर वसन्तको फूल पनि त्यसै झर्यो्