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कोरी बसेँ एक्लै यहाँ / गीता त्रिपाठी

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कोरी बसेँ एक्लै यहाँ अधुरो कहानी
सम्झीसम्झी दुखाउँछ अपूरो जीवनी
 
बेलुकीको चिसो पवन स्मृति ल्याउँछ
कुनै पलको कमजोरीलाई भारी बिसाउँछ
दिलको प्रेम छल्किएर आँसु बनी खस्छ
वियोगको सुस्केरा यो ओठमा आई बस्छ
 
सल्किएको चिता हुँ म दन्किएको ज्वाला
आफैँ यहाँ विवश भई पिउँछु विषको प्याला
परेलीका चाहनामा आँखा टोलाउँछ
अतीतको वसन्तले शिशिर बोलाउँछ