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उनिरहन्छु धागो भरी / गीता त्रिपाठी

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उनिरहन्छु धागोभरि
मेरो मन फूल भयो
छिनिइरहन्छ यो फेरिफेरि
मबाट के भूल भयो
 
हिँड्नुजत्ति हिँडिसकेँ
थाक्नुसम्म थाकिसकेँ
सबै भारी चौतारीको
बिसौनीमा राखिसकेँ
अझै मनमा एक लहर
कुन्नि केले छोई गयो
छिनिइरहन्छ यो फेरिफेरि
मबाट के भूल भयो
 
मनभित्रै आँधी उठी
झर्ने फूल झरिसके
बाँकी सबै हृदयको
मन्दिरमा सरिसके
अझै किन दुख्छ छाती
मेरो मन शूल भयो
छिनिइरहन्छ यो फेरिफेरि
मबाट के भूल भयो