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एक बाजी रित्तिई भरिन चाहन्छु / गीता त्रिपाठी

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एकबाजी रित्तिई भरिन चाहन्छु
सुनौला किरण भै छरिन चाहन्छु
मेरो मैलो मन हराएर कतै
म फेरि नयाँ याम छरिन चाहन्छु
 
सबै जालझेल सबै अनमेल
सबै फाली मनका षडयन्त्रका खेल
अभियान एउटा म चलाउन चाहन्छु
म फेरि नयाँ याम छरिन चाहन्छु
 
म काँढाहरू सब फुलाउन चाहन्छु
सबै बन्द मुहान खुलाउन चाहन्छु
मेरो मनको क्षितिज उघारेर सधैँ
म फेरि नयाँ याम छरिन चाहन्छु