भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दर्जन मृत कविहरु / विमल निभा

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:41, 4 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल निभा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


एक दर्जन मृत कविहरु
प्रार्थना गरिरहेका छन्
शान्त, स्थिर, अचल
र तटस्थ चेतनाले
सजिसजाउ
चारैतिर छरिएका छन्
अचम्मका फूल, अबिर,
अक्षता, धूप, नैवेद्य
र रहस्यमय लयमा
निरन्तर जारी छ
एक अलौकिक काव्यभजन
झरझर झरिरहेका
शब्दधारा
र भावझर्नाहरु
समाधिस्थ छ ईश्वर
कुनै मन्दिरमा
र नतमस्तक छन्
रक्तहीन कल्पनाजडित
एक दर्जन बौद्धिक शिरहरु
चुप, चुप
नारावादी कविहरु
स द्र द्र द्र
हल्ला नगर
एक दर्जन मृत कविहरु
अहिले यो शताब्दीको
सबभन्दा प्रचण्ड आरतीमा
तल्लीन छन्