भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
व्याकुलता / अजित कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:14, 9 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार }} व्...)
व्याकुलता अब भी वैसी ही है ।
अन्तर बस इतना है—
- पहले वह होती थी रोज़-रोज़,
- तब हर अन्यायी को खोज-खोज
- लड़ने को मुट्ठी तन जाती थी ।
और आज—
- सुख-सुविधा की चिन्ता, कामकाज
- में फँसकर
- चार-छै महीनों में एक बार
- होती है ।
किन्तु आज भी है वह दुर्निवार ।
अब भी मेरी आत्मा वैसे ही रोती है ।