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प्रेम तुम्हारा पावन-पावन / रुचि चतुर्वेदी

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प्रेम तुम्हारा पावन पावन,
बनकर सावन बरस गया।
इतना बरसा हृदय धरा पर,
नयन गगन भी हरष गया॥

भावों से भर गयी बदरिया,
नये रंग-रंग गयी चुनरिया।
कंगना बजे मल्हार सुनाये,
झुमके झूले बन इठलाए॥

पायलिया बज उठी छुअन से,
मौसम खुशियाँ परस गया॥
इतना बरसा हृदय धरा पर,
नयन गगन भी हरष गया॥

मुख से छलके प्रेम गगरिया,
नैनों से छलका इक सागर।
रीत रीत जाने को आतुर,
मन भीतर इक नेहिल गागर॥

हिरदय का आँगन भावों की
वर्षा रितु में सरस गया॥
इतना बरसा हृदय धरा पर,
नयन गगन भी हरष गया॥