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उखाडिंदैछ / युद्धप्रसाद मिश्र

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प्रचण्ड निम्न वर्गमा उठी उठी बहादुरी
विपन्न पूँजीवादीता छ भत्कँदै गयो धुरी

बुझिसक्यो मनुष्यका दिमागले सही कुरा
अकाट्य देश मुक्तिको खुलिसक्यो दिशा पूरा

गरीब वर्गको रगत् निचोरने प्रथाहरू
छ नासिदै पुराण मन् गढन्तका कथाहरू

विकासशील चेतना सधैँभरी छकिन्छ र ?
उखाडिँदै पुजारीको छ पूजनीय पत्थर