भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भेड़िये और आदमखोर बकरियाँ / नीरज नीर
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:14, 12 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज नीर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जंगल में रहती हैं बकरियाँ
और बकरियों की खाल पहने
कुछ भेड़िये भी
मेमनों की हत्या करके
भेड़ियों ने रक्त लगे मुंह साफ किए हैं
नदी के जल में
नदी का जल हो गया है लाल...
नीचे की बस्ती में
चर्चा गरम है ...
फैल रही है अफवाह
इल्जाम है जंगल की बकरियों पर कि वे
हो गयी हैं हिंसक
उनके मुंह लग गया है खून
बकरियों को मारने की
बनाई जा रही है योजनाएँ
भेड़िए हंस रहे हैं
बकरियाँ बदहवास हैं
बस्ती में है चुनावी शोर
लाल रंग हो गया है
गहरा और गहरा