साइमन लकड़ा कि मृत देह / नीरज नीर
हम बहुत सुकून से थे
अपने जल, जंगल, जमीन और पहाड़ों के साथ
अपने विश्वास और संस्कारों के साथ।
फिर आए साहूकार
जिन्होने नमक के बदले
लूट ली हमसे, हमारी जमीन
हमने उठाया उनके खिलाफ
धनुष
किया उलगुलान
और कहा उन्हें
दिकू।
फिर आया चर्च
उन्होने कहा "हमारा धर्म खराब है"
और वही है हमारी सारी परेशानियों की वजह
उन्होने लूट लिया हमसे
हमारा धर्म
हम अपनी परेशानियों का चाहते थे
अंत
हममे से कई हो लिए उनके
संग।
फिर आया लाल सलाम
उन्होने कहा
"वे देंगे हमें मुक्ति"
स्थापित होगा हमारा राज्य
उन्होने छिन लिये हमसे
हमारे बच्चे
और रख दी उनके नाजुक कंधों पर
बंदूक
स्वर्णरेखा का पानी होने लगा
लाल।
और फिर इन बंदूकों के पीछे-पीछे आई
बूटों की आवाज
सारंडा के अरण्य शांति में
पंछी करने लगे
कोलाहल
दगने लगी
गोलियाँ
सखुआ के वृक्षों ने मूँद ली अपनी आँखें
हमसे लूट ली गयी हमारी
जिंदगी।
झमाझम बारिश हो रही है
मैं सींच रहा हूँ
अपने लहू से
धान की फसल।
मैं साइमन लकड़ा हूँ
मेरी मृत देह पड़ी है
धान के खेत में।