कितनी बार
इन रास्तों में पर सफ़र किया है मैंने
कितनी-कितनी बार
कितनी बार ये गलियाँ, सड़कें
ये घर मुझसे मिलकर गुज़रे हैं,
कितनी-कितनी बार।
खिलते फूल, लहलहाते खेत
खिलते चेहरे, खिलती आवाजें,
मुझसे कह गए हैं बहुत कुछ,
कितनी-कितनी बार
फिर से वापस लौटना चाहती हूँ
कि आस नहीं मिटी मेरी
लोग पूछते हैं मुझे
वहाँ जाओगी तुम
कितनी-कितनी बार?