भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिखना / कुमार राहुल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:25, 15 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार राहुल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

और कितने दिन रहेंगे हम
शिकस्तगी के हवाले
कितने दिन रहेगी तुम्हारे
रंग-ओ-बू की तासीर हम में
कितनी बार हारेंगे इश्क की बाज़ी
कितनी दफ़ा दरकेगी दिल की दीवार

इस बार लिखो तो लिखना–
अपनी नाज़ के सिलसिले याद हैं
वसवसों में घिरे थे रात और दिन कैसे
निकल आई है शाम दिन की मुंडेरों से
निकल आता हो जैसे कोई दफ़्तर से

अब भी होता है जाना बल्लीमारां क्या
अब भी बदलती हो उतनी ही गाड़ियाँ दफ्तर को
पढ़ती हो वैसे ही नज्में किसी की रेडियो पर
बैठ जाती हो कहीं भी कभी भी ख़त लिखने

कितने दफ़े हो सकती है मोहब्बत
दोहराए जा सकते हैं वादे कितनी बार
कब तलक उतरेंगे ये सदके तुम्हारे
कितने मरहले करने हैं इस जनम पार

कितनी देर चलेगा तीरा नसीबी का खेल
कितनी बार तुलेंगे मिज़ानों पर हम
कब तलक पिरोयेंगे ये ग़म के नौहे
और कितने दिन!
इस बार लिखो तो लिखना...