भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राग वाणी - १ / अभयानन्द
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:25, 16 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अभयानन्द |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavit...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ज्ञान भयो परवेस् भ्रममा छुटि गई ।धु।।
भर्मै भर्ममे भुला सबकोई भर्म छुटा वीर्ला कोही ।।
भर्म छुटा सब जग झुटा अगम्देसको राहालीई ।।ज्ञान.।।१।।
अनहद नाद गुफामे वाजे झीलीमीली ज्योतिप्रकास भई ।।
अग्नी चक्र दोदल कमल त्रीकुटी ध्यान प्रतीत भई ।।ज्ञान.।।२।।
उलटा कमल सहस्र दलफुल जाहाँ दोलने विश्राम पा२ ।।
अभयानन्द कहे सुनसाधु आवागमन छुटाई ।।ज्ञान.।।३।।
दोहाः- आत्मा से देखीये परमात्मा (को?) रुप्
सबसे व्यापक होये एक रस अद्भुत अनूप ।।१।।