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सीताजी / रामदास

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सीता सुन्दरी छन् भनी सकलले
भन्थ्या र (त) देखिउँ पनी ।
नाक उच्चो कटि (ति) पातलो शरिरमा
रौं नास्ति (हिं) कत्ती पनी ।।
थोरै माथि (मात्र) कपालमा उन (हि)
सुन्निन् ता दुख माननिन् सगिनि है (हो)
कुन तुछय पुच्छर् नहि (पुच्छर त नाहीं बुची)

[‘वनका फूल’ बाट]
‘बुइँगल’ बाट साभार