भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कल फिर आ जाना / सुरेन्द्र डी सोनी
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:59, 18 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वे और होंगे
जो रात के किसी पहर में
आँख लगने के इन्तज़ार में
कहते हैं कि ज़िन्दा रहेंगे
तो कल तुझे देखेंगे
हाँ, यह मैं हूँ.. मैं
जो रात को
मलकर अपने बदन पर
हठ करती नींद को
दबाकर तकिए के तले
कहता हूँ तुझे
कि मुझे देखना हो
तो कल फिर आ जाना
सूरज !