भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक अन्य गीत / वीक्तर हिगो / हेमन्त जोशी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 20 मई 2020 का अवतरण ('3 {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीक्तर हिगो |अनुवादक=हेमन्त जोश...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

3

भोर हुई ! और बन्द हैं तेरे द्वार
प्रिय अब अपने दृग खोलो
जिस पल खिलें गुलाब अपार
तुम नव-किरणों संग हो लो

ओ मेरी मनमोहिनी
सुन री ! अपने प्रेमी को
जो गाए है प्रेम-रागिनी
और भिगोए नयनों को

तेरे धन्य द्वार पर आकर
आभा कहती, मैं दिन हूँ
संगीत सुधा में, कोयल कहती
मन कहता, मैं प्रीत हूँ

ओ मेरी मनमोहिनी
सुन री ! अपने प्रेमी को
जो गाए है प्रेम-रागिनी
और भिगोए नयनों को

मूल फ़्राँसीसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी