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अदहन / संतोष कुमार

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भोर के किरिन अगिआता
साँस के बढ़ रहल बा ताप
खउले लागल बा विचार
जइसे खउलत बा अदहन
सुगबुगाहट के रूप बदल रहल बा
उबल रहल बा भीतरे-भीतरे अदमी
आखिर केहू के सपना कब ले तुराई
ओकर मान मरजाद कब ले हराई
अबरा के मउगी /
भर गाँव के भउजी
कब ले कहाई
अन्याय के हद होला
सीमा होला जलन के
सामंतवादी सोच सुरसा के कब ले बवले रही मुँह
पाखण्ड के मंतर कब ले छलत रही
जादे अकरावला पर
सहनशीलता के टूटेला सहन
होला ओकरो दवाई / थुराई / कुटाई
अ-दहन जब खउली / खदकी

झुलसा दी बदगुमानी के मुँह
फफोला हो जाई
अन्याय के चेहरा पर
बस
आंच तेजिअवला के काम बा
अपना हिम्मत के
अपना विचार के
अकेले ना
सज्जी गाँव जवार के॥