भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर हुई शाम / नमन दत्त
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 24 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नमन दत्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फिर हुई शाम, जाम याद आये।
चश्मे-जाँ के सलाम याद आये॥
चमन में देखकर बहार हमें,
कितने महबूब नाम याद आये॥
अपनी आवारगी के पहलू में,
यकबयक कितने काम याद आये॥
रूबरू तुझको अपने पाते ही,
हसरतों के कलाम याद आये॥
दब के जो रह गये किताबों में,
उन गुलों के पयाम याद आये॥
चश्मे-मय उनकी देखकर 'साबिर' ,
मैकदे के निज़ाम याद आये॥