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ज़माना ख़ाक़ में ढूंढेगा / नमन दत्त
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ज़माना ख़ाक में ढूँढेगा कल नामो-निशाँ अपना।
बहारें याद करके रोएँगी दिलकश समां अपना।
तलाश कर न वफ़ा को, गुज़रता वक्त भी देख,
बदलकर तौर चल तू आजकल उम्रे-रवाँ अपना।
किसे तलाश किया? कौन तेरे साथ हुआ?
न ये दुनिया हुई अपनी, हुआ न आसमां अपना।
बहारों में ये कैसा ख़ून रोया है गुलिस्ताँ ने,
बदलकर भेस शायद आई है यारो ख़िज़ां अपना।
बचाने ज़िंदगी अपनी, करें फ़रियाद अब किस से?
लिए ख़ुद ही खड़ा है सर पर ख़ंजर बाग़वाँ अपना।
निशाँ मंज़िल का पाना अब तो मुमकिन ही नहीं "साबिर"
बनाया तुमने इक काफ़िर को है जब रहनुमा अपना।