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जाऊँ हूँ जी जाऊँ हूँ / गगन गिल

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जाऊँ हूँ जी जाऊँ हूँ

रस्ते अकेले पे

लौटे बिना ही कहीं

दूर चली जाऊँ हूँ


चुप हूँ जी बहुत चुप
चाबी फेंक ताले बंद
सुख में है अपना जी
भटका करे था बहुत


बच गई जी बच गई

किसी घने दुख से

बच गई

देखा भले न था

पहचानूँ पहचानूँ थी


कभी कभी निकलूँ थी
खोल के गुपचुप बाहर
उसमें भी नोच दें थे
पंजे, नाख़ून और डंक


दुनिया-वुनिया का क्या जी

मैल थी मलाल थी

आरी चलाती जी पे

जी का जंजाल थी


जाऊँ हूँ जी जाऊँ हूँ
बीहड़ निराले में
शेर के पेट में ही
बैठी दूर जाऊँ हूँ