परायेपन की कविता / अन्तोनियो जासिन्तो / उज्ज्वल भट्टाचार्य
यह अभी तक मेरी कविता नहीं है
मेरी आत्मा और मेरे ख़ून की कविता
नहीं
अपनी कविता लिखने के लिए मेरी समझ और ताक़त नहीं है
वह महान कविता जो मेरे अन्दर हिलोरे ले रही है
मेरी कविता दिशाहीन भटकती है
झाड़ियों में या शहर में
हवा में गूँजती आवाज़ में
समुद्र के उफ़ान में
होने के हर पहलू में
मेरी कविता बाहर आती है
दिखावटी कपड़ों में लिपटी हुई
ख़ुद को बेचती है
बेचती है
‘नीम्बू, नीम्बू ले लो’
मेरी कविता सड़कों पर दौड़ती है
माथे पर कपड़े की पट्टी लगाई हुई
ख़ुद को पेश करती है
पेश करती है
‘मैकरेल, सार्डिन, स्प्रैट
ताज़ी मछली, ताज़ी मछली-ई-ई’
मेरी कविता सड़कों पर भटकती है
‘अख़बार, आज का अख़बार’
और अब अख़बार में मेरी कविता रहती है ।
मेरी कविता कहवाघरों में जाती है
‘लॉटरी कल ही खुलेगी लॉटरी कल ही’
और मेरी क़लम की धांँच
पहिये की तरह पहिया
घूमने की तरह घूमना
कभी बदलता नहीं
‘लॉटरी कल ही खुलेगी
लॉटरी कल ही खुलेगी’
मेरी कविता क़स्बे से आती है
शनिवारों को कपड़े लाती है
सोमवारों को कपड़े ले जाती है
शनिवारों को कपड़े सौंपती है और ख़ुद को भी
सोमवारों को ख़ुद को सौंपती है और कपड़े लेती है
मेरी कविता दर्द सहती है
कपड़े धोनेवाली लड़की की
जो शर्म से लाल
बन्द कमरे में
एक नाकारा मालिक को सहती है
हो रहे कुकर्म को पसन्द करने की कोशिश करती है
मेरी कविता रण्डी है
झुग्गी में अपनी कोठरी के टूटे दरवाज़े पर
‘जल्दी करो जल्दी करो
पैसे दो
आओ मेरे साथ सोने के लिए’
मेरी कविता ख़ुशमस्त गेन्द से खेलती है
भीड़ के बीच जहाँ सभी नौकर हैं
और चिल्लाती है
‘ऑफ़साइड गोल गोल’
मेरी कविता नंगे पैर सड़क पर चलती है
मेरी कविता गोदी में बोरे ढोती है
माल भरती है
माल ख़ाली करती है
और गाने की भी ज़ुर्रत करती है
‘टू टू टू टर्र
आरिम्बियुम पुयिम पुयिम’
मेरी कविता रस्सी से बान्धी जाती है
सिपाही से पकड़े जाने के बाद
ज़ुर्माना भरती है, बॉस ने
पास पर दस्तख़त नहीं किए थे
सड़क पर काम करती है
दिल उखड़ा हुआ
सर मुंड़ा हुआ
पके हुए मुर्गे सा
एक वज़नदार अँकुश
एक खेलता हुआ चाबुक
मेरी कविता बाज़ार में रसोई में काम करती है
कारख़ाने की पट्टी पर
शराबख़ाने में भीड़ मे होती है
वह ग़रीब और गन्दी है
मूर्खता में जीती है
ख़ुद के बारे में उसे पता नहीं
पता नहीं कैसे अपनी बात कही जाए
मेरी कविता सौंपी जाने के लिए बनी
ख़ुद को सुपुर्द करने के लिए
कुछ माँगे बिना
लेकिन मेरी कविता क़िस्मत के सहारे नहीं है
मेरी कविता ऐसी कविता है जिसकी चाहत है
जिसे पता है
मेरी कविता मैं जैसी सफ़ेद है
वह मुझ काले पर सवार है
ज़िन्दगी के रास्ते पर सवार ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य