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रुख़सती / राजेंद्र तिवारी 'सूरज'

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न जाने क्या कमाया है..न जाने क्या गवांया है ..
गणित जीवन का सच्चा हो.. बस ऐसी रुख़सती देना |

के जाते वक़्त सबको ..प्यार से मैं अलविदा कह दूँ ..
मेरे मौला मेरे इस दर्द में भी ...इक हँसी देना |

मेरी ऑंखें बहुत धुंधला गयी हैं ..कुछ महीनों से..
अगर राहें अन्धेरी हों .. तो थोड़ी रौशनी देना |

मेरे पोते बहुत ही दूर मुझसे जा के रहते हैं ..
हों मेरे साथ जब जाऊँ .. सुबह ऐसी नयी देना |

न जाने अपने बच्चों को ..कितनी बार डाँटा है ..
उन्हें एक बार जी भर प्यार कर लूँ ..वो ख़ुशी देना |

सुना है माँ मेरे बच्चों की.. उस दुनिया में अब भी है..
मैं सारा शुक्रिया कह दूँ.. बस एक ऐसी घडी देना |

कहाँ जाऊँगा .. मन डरता ..अकेलेपन से है मेरा ..
अगर लौटूं तो पोतों की हमारे ..दोस्ती देना |

गणित जीवन का सच्चा हो.. बस ऐसी रुख्सती देना ||