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परिणत घर भएछ / ज्ञानुवाकर पौडेल

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खण्डहरमा परिणत घर भएछ
हताहत यहाँ धेरैको रहर भएछ

द्रौपदी लुटिँदा बीच बजारमै
अन्धो कृष्णजीको नजर भएछ

जनताले चुनेको जनताकै राजमा
जनताकै आवाज बे-असर भएछ

गाउँलेका लागि किन हो कुन्नि
टाढा धेरै टाढा यो शहर भएछ