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मुबारक! मुबारक! / संगीता कुजारा टाक

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ये तुम्हारे दो कदम
मेरे शहर की दहलीज पर
कि ये कदम-बोसी
मुझे मुबारक!

ये तुम्हारी साँसो की महक
मेरे शहर की हवाओं में
कि ये मस्त हवाएँ
मुझे मुबारक!

ये तुम्हारे चेहरे का तेज
मेरे शहर के सूरज में
कि ये आग
मुझे मुबारक!

ये तुम्हारे दो बोल
मेरे शहर के कानों में
कि ये नज़्म
मुझे मुबारक!

ये तुम्हारी 'हाँ'
ये मेरी 'हाँ'
और इस शहर की 'हाँ'
कि ये 'हाँ' हमें मुबारक!