भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आलोचनात्मक रवैये पर / बैर्तोल्त ब्रेष्त / नीलाभ
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:09, 8 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त |अनुवादक=नीला...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बहुत-से लोगों को
आलोचनात्मक रवैया कारगर नहीं लगता
ऐसा इसलिए कि वे पाते हैं
सत्ता पर उनकी आलोचना का कोई असर नहीं पड़ता।
लेकिन इस मामले में जो रवैया कारगर नहीं है
वह दरअसल कमज़ोर रवैया है।
आलोचना को हासिल कराए जाएँ
अगर हाथ और हथियार
तो राज्य नष्ट किए जा सकते हैं उससे
नदी को बाँधना
फल के पेड़ की छँटाई करना
आदमी को सिखाना
राज्य को बदलना
ये सब हैं कारगर आलोचना के नमूने
साथ ही कला के भी।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : नीलाभ