भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस पर बहस नही / हरींद्र हिमकर

Kavita Kosh से
Jalaj Mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:03, 8 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> इस पर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस पर बहस नही कि
हम झेल रहे हैं-
सुखाड़
हमें निगल रही है-
बाढ़ पर बाढ़
हर साल
दरक रही है दीवार
हम सूख रहे हैं
दह रहे हैं
झेल रहे हैं-
महामारी,बेकारी
इस पर कोई बहस नही
टूटते-बिखरते
दहते-बहते
तहस-नहस होते
हमारे घरों-परिवारों पर
कोई बहस नही
उजड़ते-सिमटते जंगलों
ढहते-मिटकते पहाड़ों
विलुप्त होते पशु-पक्षियों की जातियों
प्रजातियों पर
कोई बहस नही
बहस का विषय है-
तुम्हारी जीत
तुम्हारी सुविधाओं
और तुम्हारी सरकार बनने की संभावनाओं
से सम्बन्धित योजनाएँ
बाढ़ में
तो तुम सब
पकड़ लेते हो उच्चासन
हमें पिला देते हो
सपनों भरे
नशीले भाषण
और अपने कुनबों के साथ
यानों में उड़-उड़ कर
लेते रहते हो
संहार बीच सेल्फ़ी
और स्वयं उबर जाते हो
मनु और सतरूपा की तरह
हर प्रलय से
और बाकी लोगों का कोई हिसाब नही
उनका कोई इतिहास नही
उनपर कोई बहस नही