भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खंडहर / पं. चतुर्भुज मिश्र
Kavita Kosh से
Jalaj Mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:10, 13 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> स्ने...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
स्नेह सिक्त गांव अब अतीत हो रहे।
शहर खंडहर से अब प्रतीत हो रहे।।
ज्योत्सना में ज्योति मगर शांति नहीं।
अरुणिमा में लाली मगर कान्ति नहीं।
भाव शून्य शब्द सारे गीत हो रहे।
शहर खंडहर से अब प्रतीत हो रहे।।
पवित्रता मलीन और मित्रता उदास।
यंत्रणा की भूमि पर अंकुरा संत्रास
शत्रु के पर्याय आज मीत हो रहे।
शहर खंडहर से अब प्रतीत हो रहे।।
धवल आवरण के तले भ्रष्ट आचरण।
अनय महा सिंधु में सतत् संतरण।।
न्यायमूर्ति धर्मपाल क्रीत हो रहे।
शहर खंडहर से अब प्रतीत हो रहे।।