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मन का दर्द / प्रियंका गुप्ता
Kavita Kosh से
जब भी कभी
दरकता है दिल
सुने न कोई
उसकी चटकन
किसी को कोई
फ़र्क नहीं पड़ता
अपना दुःख
सर्वोपरि होता है
हर रिश्ते में
तेरे मेरे फ़ासले
बँटे हुए से
दुखवा कासे कहूँ
सोचे है मन
तलाशता फिरे है
थोड़ी सी छाँव
ताकि कुछ पल को
राहत पा ले
कड़ी-तीखी धूप से
आँखों की नमी
भाप सी उड़ जाती
जग के आगे
सूखी आँखें लेकर
लब मुस्काते
कह कर क्या होगा
मन की व्यथा
छिपा अपने दर्द
हँसते रहो सदा ।