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क्या गाऊँ? / सुभाष पाण्डेय
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क्या गाऊँ?, तुझे सुनाऊँ।
सुर, लय, ताल, छन्द, कविता सब तेरे चरण चढ़ाऊँ।
क्या गाऊँ?, तुझे सुनाऊँ।
साँस में तू, आवाज़ में तू
मेरे हर इक साज में तू
तेरी कृपा से तेरे सरगम,
तेरे लिए बजाऊँ।
क्या गाऊँ?, तुझे सुनाऊँ।
मेरे गीतों की तू भाषा
भाषा की अन्तिम परिभाषा
मैं गूंगे का शब्द अवाचित
कैसे पढ़ूँ रिझाऊँ।
क्या गाऊँ?, तुझे सुनाऊँ।
मेरे सुर बदलें पल- पल, क्षण
तू संगीत सदैव, सनातन
उस संगीत की स्वरलहरी के
प्राण में प्राण मिलाऊँ।
क्या गाऊँ?, तुझे सुनाऊँ।