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सावण (तीन) / इरशाद अज़ीज़
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वाह इंदर राजा, वाह!
सुपनां मांय डूब्योड़ी आंख्यां रो
पाणी सूख जावै
अर भोळा-भाळा जिनावर-पाखी
अचेत होय जावै
जणै थांरै इमरत रा
चार छांटा
बळती मरुधरा रै
चूंठिया बोड़ण नै आवै!
औ कांई थांरो इंसाफ?
कठैई अणमावतो समदर
झरणा अर तळाव
तो कठैई
आंख्यां सूं झरतो सावण!