भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपरी माटी / इरशाद अज़ीज़

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:36, 15 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आवणो ईज पड़सी
बांनै पाछो
जिका छोडग्या
आपरी माटी नैं बिलखता
अर गमग्या
रोसनी रै जंगळ मांय
रूंख सूं खिरयोड़ा पानड़ा
सूख‘र करड़ा पड़ जावै
बगत री लूवां रा
थपेड़ा खावता-खावता
जीवणो है तो पीवणा पड़सी
खारा गुटका आपरै आंसुवां रा
अर आपरी माटी मांय
रमणो पड़सी
आपो-आपनैं
सींचण खातर।