संसद ठप थी / विकास पाण्डेय
ना प्रश्नकाल ना शून्यकाल था,
संसद ठप थी।
सड़कों पर भारी बवाल था,
संसद ठप थी।
नव कलियों के पद मर्दन से
मानवता थी त्रस्त हुई।
निर्भया चौक चौराहों पर
अवपीड़न की अभ्यस्त हुई।
रक्त से रंजित वस्त्र लाल था,
संसद ठप थी
सड़कों पर भारी बवाल था,
संसद ठप थी।
नलकूप था सूखा, बच्चे भूखे
चहुँओर थी तंगहाली।
धरती का सीना फट जाता था
देख फसल की बदहाली।
हर किसान का बुरा हाल था,
संसद ठप थी।
सड़कों पर भारी बवाल था,
संसद ठप थी।
विश्वविद्यालय गूँजा था
भारत विच्छेद के नारों से।
अफजल के पोषक निकले थे
सत्ता के गलियारों से।
देशद्रोह का बिछा जाल था,
संसद ठप थी।
सड़कों पर भारी बवाल था,
संसद ठप थी।
न्यायपालिका कि शुचिता पर
प्रश्नों की बौछार हुई।
माननीय उतरे सड़कों पर
संविधान की हार हुई।
उठा स्वायत्तता पर सवाल था,
संसद ठप थी।
सड़कों पर भारी बवाल था,
संसद ठप थी।
जनता का धन असुरक्षित था,
बैंकों ने था घात किया।
धन पशुओं और नीति नियंताओं
ने मिल आघात किया।
जन-जन का जीना मुहाल था
संसद ठप थी।
सड़कों पर भारी बवाल था,
संसद ठप थी।