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चार मुक्तक / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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चार मुक्तक

जोड़ने के काम में ज़िन्दगी हमने बिताई ।

जो थी शक्ति तुम्हारी तोड़ने के काम आई ॥

आज हमको है नहीं तनिक भी अफ़सोस मन में ।
सदा ही उदास दिल में प्यार की ज्योति जगाई ॥
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अपने लिए हम कब जिए ,नहीं जानते हैं ।
है पास नहीं दौलत हमारे- मानते हैं ॥
पर नहीं कर्ज़ हमारे सिर पर है किसी का ।
कौन अपना यहाँ पराया पहचानते हैं ॥
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हाँ उनका कर्ज़ हमारे सिर पर अब तक चढ़ा है।
जिन्होंने हमारे उर के हर कम्पन को पढ़ा है ॥
जिक्र तक भी नहीं किया है जिन्होंने प्यार देकर ।
उनके बल पर हमारा हर क़दम आगे बढ़ा है ।।
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धर्म नहीं इंसान को इंसान से है बाँटता ।
धर्म नहीं जुनून में कभी सिर किसी का काटता ॥
जग में दु:ख का या दर्द का नाम कुछ होता नहीं
धर्म वह जो राह की हर खाई को है पाटता ॥